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वरदान
६८
 

मुन्शीजी―(घुड़ककर) इसे क्यों जलाते हो? अब कबूतर कहाँ रहेंगे?

कहार―छोटे बाबू की आज्ञा है कि सब दरवे जला दो।

मुन्शीजी―कबूतर कहाँ गये?

कहार―सब उड़ा दिये, एक भी नहीं रखा। कनकौए सब फाड़ डाले, डोर जला दी, बड़ा नुकसान किया।

कहारों ने अपनी समझ में मार-पीट का बदला लिया। बेचारे समझे कि मुन्शीजी इस नुकसान के लिये कमलाचरण को बुरा-भला कहेंगे। परन्तु मुन्शीजी ने यह समाचार सुना तो भौंचक्के से रह गये। उन्हीं जानवरों पर कमलाचरण प्राण देता था, आज अकस्मात् क्या कायापलट हो गयी? इसमें अवश्य कुछ भेट है। कहार से कहा―बच्चे को भेज दो।

एक मिनट में कहार ने आकर कहा―हजूर, दरवाजा भीतर से बन्द है। बहुत खटखटाया, बोलते ही नहीं।

इतना सुनना था कि मुन्शीजी का रुधिर शुष्क हो गया। झट सन्देह हुया कि बच्चे ने विष खा लिया। आज एक जहर खिलाने का मुकदमा फैसल किया था। नगे पाँव दौड़े और वन्द कमरे के किवाड़ पर बलपूर्वक लात मारी और कहा―‘बच्चा। बच्चा।' यह कहते-कहते गला रूध गया। कमला पिता की वाणी पहिचानकर झट उठा और अपने आँसू पोंछकर किवाड़ खोल दिया। परन्तु उसे क्तिना आश्चर्य हुया, जब मुन्शीजी ने धितकार, फटकार के बदले उसे हृदय से लगा लिया और व्याकुल होकर पूछा― ‘बच्चा! तुम्हें मेरे सिर की कसम, बता दो तुमने कुछ खा तो नहीं लिया? कमलाचरण ने इस प्रश्न का अर्थ समझने के लिये मुन्शीजी की ओर आँखें उठायी तो उनमें जल भरा था। मुन्शीजी को पूरा विश्वास हो गया कि अवश्य विपत्ति का सामना हुया। एक कहार से कहा―‘डॉक्टर साहब को बुला ला। कहना, अभी चलिये।'

अब जाकर दुर्बुद्धि कमला पिता की इस घबराहट का अर्थ समझा। दौडकर उससे लिपट गया और बोला―आपको भ्रम हुआ है। आपके