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चरदान
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भूतों के मान और प्रतिष्ठा का अनुमान बडी चतुराई से किया गया है। जोगी बाबा आधी रात को काली कमरिया ओढे, खड़ाऊॅ पर सवार, गॉव के चारों ओर भ्रमण करते हैं और भूले-भटके पथिकों को मार्ग बताते हैं। साल में एक बार उनकी पूजा होती है। अब भूतों में नहीं वरन् देवताओं में गिने जाते हैं। वह किसी भी आपत्ति को यथाशक्ति गाँव के भीतर पग नहीं रखने देते। इनके विरुद्ध धोबी बाबा से गाँव-भर थर्राता है। जिस वृक्ष पर उनका वास है, उधर से यदि कोई दीपक जलाने के पश्चात् निकल जाय, तो उसके प्राणों की कुशलता नहीं। उन्हें भगाने के लिए दो बोतल मदिरा काफी है। उनका पुजारी मगल के दिन उस वृक्ष के तले गॉजा और चरस रख आता है। एक लाला साहब भी भूत वन बैठे है। यह महाशय पटवारी थे। उन्हें कई पडित असामियों ने मार डाला था। उनको पकड़ ऐसी गहरी है कि प्राण लिये बिना नहीं छोड़ती। कोई पटवारी यहाॅ एक वर्ष से अधिक नही जीता। गाँव से थोड़ी दूर पर एक पेड़ है। उस पर मौलवी साहब निवास करते हैं। वह वेचारे किसी को नहीं छोड़ते। हाॅ, वृहस्पति के दिन पूना न पहुॅचायी जाय, तो बच्चों को छेड़ते हैं।

केसी मूर्सता है! कैसी मिथ्या शक्ति है। ये भावनाएँ इनके हृदय पर वज्रलीक हो गयी है। बालक बीमार हुआ कि भूत की पूजा होने लगी। खेत-खलिहान में भूत का भाग, व्याह आदि में भूत का भाग, जह देखिये, भूत ही भूत दीखते हैं। यहाॅ न देवी है, न देवता। भूतों ही का साम्राज्य है। यमराज यहाॅ चरण नहीं रखते, भूत ही जोव-हरण करते है। इन भावों का किस प्रकार सुधार हो? किमधिकम्।

तुम्हारी,
 
विरजन’