पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
श्री हर्ष


संक्षेप रूप में उसने गङ्गा पार का हिमालय से नर्मदा तक का सब प्रदेश तथा नेपाल, मालवा, गुजरात काठियावाड़ इत्यादि सब प्रदेशों पर अपना आधिपत्य जमाया। पूर्व काल के गुप्त मालव इत्यादि राजाओं के समान उसने भी अपना संवत निकाला था। उसका प्रथम वर्ष इ. स. ६१४ से नहीं किन्तु इ. स. ६०८ से आरम्भ होता है।

इतने बड़े विस्तृत राज्य पर अकेले शासन करना असम्भव होने से बाण के उपरोक्त कथनानुसार हर्षने सबराज्य व्यवस्था स्थलों पर अधिकारी तथा रक्षक रखे थे, किन्तु हर्ष का ऐसा विचार था कि राजा की अपनी देखरेख विना कार्य ठीक नहीं चलता, इस लिये वह सब ठाट से आठ महीने तक अपने राज्य में घूमा करता था। वर्षा काल में घूमना बौद्ध धर्म में मना है, और तिस पर इतने ठाट से घूमना और भी कठिन है। अतः वर्षा ऋतु के चार महीने वह अपनी राजधानी में ही व्यतीत करता था। अपनी मुसाफरी में वह सद्गुणी लोगों को