पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


वेर चोर डाकुओं से घिरा था ऐसा वह स्वयं लिख गया है। साधारण अपराध के लिये कैद का दण्ड था और कई वेर बन्दी को भूखे भी मार दिया जाता था। भयङ्कर पाप वा राजद्रोह के लिये अपराधी के हाथ, नाक, कान, पैर इत्यादि काट डालना विहित था, तो भी हर्ष इसका पालन न कर, उन्हें देश निकाला देता था। छोटे अपराध के लिये जुरमाना किया जाता था। विष, देवता, बोझ, पानी इत्यादि दिव्य उपायों द्वारा अपराधी से दोष की स्वीकृति कराई जाती थी। प्रत्येक प्रान्त में एक विशेष अधिकारी द्वारा अच्छे अथवा बुरे कार्यों तथा जीत हार का वर्णन वृत्तान्त पत्र में लिखा जाता था। अभी तक कोई ऐसा पत्र हाथ नहीं लगा यह विचारणीय बात है। उस समय विद्या का प्रचार बहुत था और विशेषतयः ब्राह्मणों तथा बौद्ध यतिओं में इसका प्रसार अधिक था । मौर्य साम्राट अशोक जो हर्ष से नौ शताब्दि पूर्व हो चुका है, एक ही युद्ध कर संतुष्ट हो गया था, किन्तु हर्षने लगभग ३७ (सैंतीस) वर्ष तक युद्ध करने के पश्चात् ही अपनी तलवार को म्यान में डाला और अशोक का अनुकरण