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श्री हर्ष


नाटक भास ने ही लिखें हैं। ऐसे कवि कालिदास की शैली कहीं कहीं वाल्मीकी रामायण से मिलती है तो इस से क्या हुआ। बहुत कहें तो इतना कह सकते है कि हर्ष ने भास के ग्रन्थ पढ़े होगें और उनका प्रभाव उसकी रचनाओं पर पड़ा होगा। इन नाटकों का रचयिता श्रीहर्ष ही है यह बात निश्चित हो चुकी है। इस निर्णय का समर्थन चीनी यात्री इत्सिङ्ग के लेखों से होता है। वह लिखता है कि राजा शिलादित्य ने बोधिसत्व जीमूतवाहन की कथा कवितारूप में लिखी थी। इस जीमूतवाहन को एक नाग के छुड़ाने के निमित्त स्वयं अधीनता स्वीकार करनी पड़ी थी। यह कविता गाई गई थी, और अनेक पुरूषों से उसने यह नाटक हावभाव नृत्य इत्यादि के साथ अभिनय करवाया था, और इस प्रकार उसी समय ही इसको प्रजाप्रिय बना दिया था। इन सब बातों पर से ऐसा कहा जा सकता है उपरोक्त तीनों नाटक श्रीहर्ष ने स्वयं ही-वा अपने राज कवियों की सहज सहायता से रचे थे। उसमें कवित्व शक्ति नहीं थी ऐसा मानने का कोई कारण नहीं।