पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(५४)


ग्रीष्म की गर्मी से बचने के लिए, रानियों के साथ स्नानागर और भूगर्भगृह इत्यादिको में उसने निवास किया और किसी तरह अपने को ग्रीष्म की ऊष्मा से बचाया। कुछ काल के अनन्तर उसने वापिकाओं में जल-क्रीड़ा भी की। वर्षा ऋतु आने पर भी वह अपनी राजधानी ही में रहा और नाना प्रकार के सुखोपभोग में अपना समय बिताया। चन्द्रलेखा को सम्बोधन करके वर्षा का बहुत ही अच्छा वर्णन उसने अपने मुख से किया। यह वर्णन बिल्हण ने विक्रमाङ्कदेव के मुख से केवल इसी लिए कराया है जिसमें सब ऋतुओं का वर्णन उसके काव्य में आजाय।

वर्षा के अन्त में विक्रम को यह समाचार मिला कि उसका छोटा भाई जयसिंह, जिसे उसने वनवास का अधिकारी बनाया था, उसके प्रतिकूल शस्त्र उठाना चाहता है। उसने यह भी सुना कि जयसिंह ने प्रजा को पीड़ित करके बहुत सा धन एकत्र कर लिया है; अपनी सेना भी बढ़ाई है; द्रविड़देश के राजा से मित्रता करने का भी वह यत्न कर रहा है, और सब से बुरी बात यह कि कल्याण-नरेश के योद्धाओं को भी वह अपने वशी-