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सरोजिनी की यात्रा।

अपनी बड़ी भौजाई से बिदा होने का उद्योग कर रहे थे, उसी समय मालूम हुआ कि वे भी अपने बाल-बच्चों के साथ हमारे साथ चलेंगी। उन्होंने किसी के मुँह से सुना है कि जिस राम्ते से हम लोग जा रहे हैं उसी मार्ग से बहुत लोग बरीसाल जाने के लिए कह कर फिर वहाँ नहीं गये। हम लोग भी वैसे ही धोखा न दें, इसी सन्देह से अपने दाहने हाथ की पाँचों उँगलियों के नखों को निहारती हुई वे बड़ी देर तक सोच-विचार करती रहीं। अन्त को आठ बजने के समय नखों से जितने विचारों और युक्तियों का संग्रह संभव था उतना सब संग्रह करके वे हम लोगों के साथ गाड़ी पर बैठ गई।

प्रातः काल के समय कलकत्ते के मार्ग कुछ विशेष सुन्दर नहीं होते। खास कर चितपुर रोड का दृश्य तो बिलकुल दर्शनीय नहीं होता। प्रातःकाल के सूर्य की किरणें छकड़ा-गाड़ियों के अस्त- बल पर और बिल्लौरी झाड़वाले मुसल्मानों की दुकानों पर प्रति- फलित होने लगीं। गैस-लैम्पों पर सूर्य की किरणें इस प्रकार चकमक कर रही हैं कि उधर देखते नहीं बनता। मालूम पड़ता है कि रात्रि नक्षत्रों के प्रकाश से तृप्त नहीं हुई, इसी से प्रातःकाल लाखों योजन दूर रह कर भी सूर्य के प्रकाश से चकमक फैला कर वह महत्व प्राप्त करना चाहती है। ट्रामगाड़ी सीटी बजाती जा रही है। परन्तु अभी तक अधिक मुसाफ़िर नहीं आये हैं। म्युनिसिपैलिटी की गाड़ियाँ कलकत्ते का कूड़ा-कर्कट लेकर धीरे धीरे जा रही हैं। फुटपाथ के पास किराये की गाड़ियाँ खड़ी हुई सवारियों की राह देख रही हैं। उसी अवसर पर घोड़े के चमडे से