पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/११६

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सरोजिनी की यात्रा। कि कोई आता है कि नहीं; फिर नीचं चली जाती हैं। वे बड़ आग्रह सं अधीर होकर जल की और चली जाती हैं और फिर न मालूम क्या समझ कर अपन का राक कर किनार की ओर लौट आती हैं । गाड़ी से ज़मीन पर पैर रखत ही झुण्ड के झुण्ड मरवाह आकर हम पर दृट पहुं । एक कहता है, हमारो नाव में चन्तिए. दमा कहता है, हमारी नाव में । इस प्रकार मॉझियां को लहर में हम लोगों को शरीर नौका कमी दाहन कभी वायें, और कभी जीव ही में, चक्का में पड़ कर. चूमने लगी । अन्त में अवस्था के प्रवाह सं. पूर्व जन्म के किसी विशेष पुण्य के फल सं. हम एक नाव में जाकर बैठ गय । पाल लगा कर नाव खाल दी गई। प्राज गङ्गा में कुछ अधिक लहर हैं: हवा भी है। इस ममय 'बार' है। छोटी छोटी नाव इस भमय पाल खाल कर बड़ बैग से जा रही हैं। इसी समय एक बड़ा स्टीमर, लोहे की दा नावों का लियं, छोटी छोटी नावों का तिरस्कार की दृष्टि से देखता हुआ, अपनी लाह की नाक --प्राकाश की ओर उठा कर-हप हप शब्द करता हुअा हम लोगों की ओर अग्रसर हुआ । ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि यह हमारा ही जहाज़ है। मैंने कहा-बम, नाम, टहरो, ठहरा । मांझी ने कहा, 'सरकार. डरने की कोई बात नहीं है। ऐसे एसे जहाज़ों पर कई बार हु जर लोगों को चढ़ा चुकं हैं। माझी ने जहाज़ के पास नाव खड़ी कर दी। जहाज़ से माही नीचे लटकाई गई। पहले बच्चों को जहाज़ पर चढ़ाया, तदनन्तर भाभी ने अपने स्थून चरण-कमल जब जहाज़ पर रक्खे तब हम भी भ्रमर के ममान उनके पीछे पीछे जहाज़ पर चढ़ गये ।