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विचित्र प्रबन्ध।

( २ )

वायु और प्रवाह दोनों ही प्रतिकूल थे, परन्तु इससे हमारे इस नये गजराज का किसी कठिनता का सामना नहीं करना पड़ा। यह अपनी सूँड़ को ऊपर उठा कर गर्जन करता हुआ गजेन्द्र-गमन की उपेक्षा करके चालीस घोड़े के वेग से आगे बढ़ा। हम छः आदमी और जहाज़ के एक बूढ़े मालिक, ये सात आदमी जहाज़ क कमरे के सामने थोड़ी सी खुली जगह में कुरसी पर बैठ गये। हमारे सिर के ऊपर केवल एक छत थी। सामने से, बड़े ज़ोर से, कानों के पास साँय साँय करती हुई हवा चल रही थी। उस हवा में हम लोगों के कुरते में घुस कर उसे फुला दिया और वह फर् फर् शब्द करने लगी। हमारी भाभी के साथ तो हवा ने बड़ी ही दिल्लगी की। उसने भाभी के आजानु-लम्बित, परन्तु बँधे हुए, केशों का विद्रोही बना दिया। मालूम होता है, वे बाल साँपों के वंशज थे, इसी कारण विद्राही होकर―आपस में विरोध कर―पूजनीय भाभी की नाक तथा मुँह में घुसने के लिए प्रयत्न करने लगे, और कुछ बाल वहीं सिर पर ही नाचने-कूदने लगे। उस समय मालूम होता था कि भाभी के सिर पर नाग-लाक का महोत्सव हा रहा है। परन्तु इस विद्रोह में वेणी नामक अजगर साँप ने विद्रोहियों का साथ नहीं दिया। वह दृढ़ बँधा हुआ था, हज़ारों वाणों से बिंधा हुआ था, अतएव वह गोलाकार गुड़री मारे बैठा हुआ था। अन्त में कन्धे पर सिर नवा कर भैया सोने लगे बालों की दुष्टता भूल कर भाभी भी कुरसी पर ही सो गईं।

जहाज़ बराबर चला जा रहा है। लहरें चारों ओर से उचक