पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/११९

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विचित्र प्रबन्ध । कर जहाज़ को राक रखना ही उनकी विवेचना में सबसे अच्छा उपाय समझ पड़ा। भैया ने कहा--कप्तान नहीं है तो इससे हानि क्या है, कप्तान के नीचे काम करनेवाले भी कप्तान से किसी अंश में कम नहीं है। जहाज़ के मालिक भी एक कमान हो हैं । और लोग चुप थे । पर उन सबका हृदय प्रसन्न न था। मैंने देखा कि बिना कप्तान के भी सचमुच जहाज़ चल रहा है। कप्तान के न रहने से कोई भी गड़बड़ी नहीं दग्व पड़ती। अक. म्मान जहाहा के चलने का शब्द बन्द होगया। कल नहीं चलता। उस समय "लकर डालो, लङ्गर हाना का शब्द चारों ओर से सुन पड़ने लगा । लहर भी डाल दिया गया ! सुना कि मशीन का कहीं जोड़ खुल गया है। उनकं दुकान होने पर जहाज़ भाग चलेगा। मरम्मत करनेवाले अपना काम करने में लग गयं । इम ममय माढ़े दस बजे हैं। इंद बने के पहले मरम्मत हो जाने की सम्भावना नहीं है। बैंठ बैठे गङ्गा की शाभा दग्बन लगा । शान्तिपुर के दक्षिण ओर से शुरू करके गङ्गा-तट की जैसी शोभा दंग्य पड़ता है वैसी शाभा और कहीं नहीं देग्य पड़ती। वृत्त-श्रेणियाँ, छाया और झोपड़ियाँ गङ्गा के दानों तट पर लगातार चली गई हैं: कहीं भी उनका सिलसिला नहीं टूटा। उन्हें देख कर बड़ा आनन्द होता है। कहीं कहीं हरी घाम से ढकी हुई गङ्गा-तट की भूमि जैसे गड़ा की गाद में लेट रही है। कहीं कहीं लता-मण्डित वृक्षों की कतारें गङ्गा कं जल तक झुकी हुई हैं। जल पर उनकी छाया निरन्तर डाल रही है । कतिपय सूर्य की किरणे उस छाया में झिलमिना रही हैं