पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१२५

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विचित्र प्रबन्ध। - बाला के पास दौड़ जारहे हैं। इसी ममय हल्ला उठा-राका गका, ठहरा ठहरा । गङ्गा की तरङ्गों से भी अधिक वेग से हम लोगों का हृदय धड़कने लगा। देखने पर मालूम हुआ कि सामने से लाद का एक बड़ा ला पोपा बड़े वेग से हम लोगों के जहाज़ की और वहता आरहा है, और हम लोगों का जहाज़ भी बड़ वेग से उसकी और आगे बढ़ रहा है। किसी प्रकार इन दोनों की टक्कर बचाई नहीं जा सकती। हम लोग मन्त्र-मुग्ध के ममान उमाका बड़ बड़े देखने लगे। वह भारी पीपा भैंसे के ममान सिर उठायं पाया और प्राकर उसने जहाज़ पर टकर मारी । कहाँ हैं वे निरन्तर उठनेवाला जन्न की लहरे, और मैकड़ा-जाखां लहरांका दिन-रात का महात्मनः कहाँ है वह घना वनभणी, अाकाश की वह न्वुलासा नाली प्राभा, पृथिवी के नवयोवन पूर्ण सृदय के उन्हाम ऐसी अनन्त की और उठी हुई विचित्र वृक्ष-लहरियां; कहाँ हैं वे प्रकृति कं हर- छिपे हुए बच्चे एसे छोटे छोटे गांव,--उपर नित्य स्थिर आकाश और उसके नीचे मदा को चञ्चल नदी!--यह नित्य नि:स्तब्धता के साथ कोलाहल का, मर्वत्र ममता के साथ चिर-विचित्रता का, और निर्विकार के साथ सदा परि- वर्तनशील का, निरन्तर प्रम-मिलन कहाँ है ! यहाँ ता सुरखी और का, धूल और नाक का, गाड़ी और घोड़े का परम्पर हटयोग देख पड़ रहा है। यहां चारों और दावार के साथ दावार का, दरवाज़े के साथ जंजीर का, धनियां के साथ कड़ी का और कोट के साथ बटन का परम्पर जकड़े रहना ही दृष्टिगोचर होता है । --