पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१२६

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मरोजिनी की यात्रा। - शायद पाटको न समझ लिया होगा कि अब तक जो लिला गया था वह पानी के ऊपर रहकर लिखा गया था, पर इस समय म्थल का रहनेवाला मैं स्थल पर फिर पहुँच गया है। इस समय वहां की याने यहाँ, पहले की बात पाछे, लिखो जाती हैं- अतएव इस समय जो कुछ लिवगा उम्मको भूल-चूक के लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हो सकता। इस समय मध्याह हैं : मर सामने एक इंकन है, पर पांछने के टाट पर एक माटा सा काला कुत्ता सा रहा है. बरामद में एक जंजीर में बंधा हुआ बन्दर अपना पृछ न्यु जन्ता रहा है । दीवार पर वेट तीन कोए अकारमा कांव काँत्र कर रहे हैं। बीच बीच में बे ऊपर से नाच द आते हैं और बन्दर के पास पड़े हुए भात में में एक चांच उटाकर उड़ जाते हैं। घर के कान में एक पुराना हामी- नियम रक्खा हुआ है ! इसमें एक दा मूसे धुमकर ग्यट स्वट कर रह है । कन्नकले के एक मकान के मूखे कठिन कमर के भीतर बैठा या मैं गङ्गा का आवाहन कर रहा हूँ। तप से क्षीण जद्द ऋषि की पाकम्बली की अपक्षा यहाँ अधिक स्थान है। मैं यह भी जानता है कि इस प्रकृति-राज्य में कोई भी मङ कुचित म्यान नहीं है । देवा, का यहुत छोटा होता है परन्तु उसमें बड़े बड़े वन छिप रहते हैं और एक जांच में उनकी भावी वंश-परम्परा रहती है। मैं जो यह स्टीफ़न माहव को एक बोतल ब्लू-ब्लैक म्यादी ग्वरीद लाया हूँ उनके प्रत्येक वृंद में कितने ही पाटकों की निद्रा मादर-टिंचर के आकार में वर्तमान है। यह बातल की म्याहा यदि किसी अच्छे काय मनुष्य हाथ में जाती ता उस समय मैं इसे देखकर सोचता कि