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सरोजिनी की यात्रा।

का है। अतएव मेरी यही प्रार्थना है कि मुझ पर कोई पाठक क्रोध न करें।

यह सच है कि मैं मरा नहीं, पर यमराज के भैसे ने एक ठोकर मार ही दी। अतएव उस ठोकर की बात सदा स्मरमा रहेगी। उस समय थोड़ी देर तक सभी लोग एक दूसरे का मुँह ताकते रहें― किसी के भी मुँह से एक शब्द नक नहीं निकला। सभी के मुँह पर वहीं एक भाव था, सब लोगों न चूँ करना तक भी उचित नहीं समझा। मेरी भाभी एक बड़ा कुर्सी पर एक विलक्षण प्रकार से बैठी रहीं। उनके दानों छोटे छोटे बच्चे दोनों और से आकर मुझसे लिपट गये। भैया घोड़ी देर तक अपनी बड़ी बड़ी मँछों पर ताब देते रहे, पर वे भी कुछ सिद्धान्त स्थिर न कर सके। जहाज़ के मालिक बहुत ख़फा होकर बोले―"सब दोष मल्लाद का है।" मल्लाह ने कहा―"नहीं हुजूर इसमें पतवार वाले आदमी का दोष है।" उसने कहा―"नहीं साहब, मेरा दोष क्या है, सब पतवार का दोष है।" पर पतवार बेचारा क्या कहे, वह चुपचाप ज्यों का त्यों नीचा मुँह किये पानी में डूबा रहा। गङ्गा ने उसे आश्रय देकर उसकी लाज रखली।

यहीं जहाज़ का लङ्गर डाल दिया गया। देखते देखते यात्रियों का उत्साह भी कम होगया। प्रात:काल यात्रियों के चेहरे पर जो भाव था, उनकी कल्पना में जो एञ्जिन को भी नीचा दिखानेवाली गति और आवाज़ का चढ़ा सुर था वह सन्ध्या के समय न देख पड़ा। हम लोगों का उत्साह लङ्गर के साथ साथ सात हाथ जल के भीतर उतर गया। आनन्द की बात केवल यही एक