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विचित्र प्रबन्ध।

भरत का चित्त एक मृग के बच्चे में लग गया था, अतएव उनको दूसरे जन्म में हरिण का बच्चा होना पड़ा था। मेरे हृदय में यह शङ्का सदा बनी रहती है कि मेरे यह साथी, दूसरे जन्म में, बरमा के किसी किसान की झोंपड़ी के सामने एक बहुत बड़ा तम्बाकू का खेत होकर जन्म लेंगे। मेरे साथी इन शास्त्रीय बाताँ पर बिना प्रमाण के विश्वास ही नहीं करते, बल्कि तर्क-वितर्क करके मेरे भी सरल विश्वास को मिटा देना चाहते हैं। वे तो मुझे भी सिगरेट पिलाने का बहुत प्रयत्न करते हैँ, पर अभी तक वे सफलता नहीं प्राप्त कर सके।

२७-२८ अगस्त। देवता और असुर दाना ने मिलकर समुद्र मथा था, तथा समुद्र के भीतर जो कुछ था उसे निकाल लिया था। समुद्र न तो देवताओँ का कुछ कर सका और न असुरों का। पर वह अभागे दुर्बल मनुष्यों से उसका बदला चुका रहा है। मालूम नहीं मन्दर पर्वत कहाँ है, और शेषनाग तो उसी समय से पाताल में विश्राम कर रहे हैँ। पर उस समय के मन्थन से समुद्र जो घूमने लगा था वह आज तक वैसे ही घूम रहा है। इस बात का अनुभव उदरधारी मनुष्य मात्र कर सकते हैं। जो इसका अनु- भव नहीं कर सकता वह या तो देव-वंश का है या असुर-वंश का। मेरे माथी भी शायद दूसरे दल के हैं, अर्थात् वे भी इस बात का अनुभव नहीं करते।

इससे मन ही मन मुझे बड़ा कष्ट हुआ था। मैं जिस समय बिछौने पर पड़ा पड़ा पूर्वोक्त शास्त्रीय वर्णन का अनुभव करता हुआ उसकी सत्यता को निरन्तर अपने शरीर से प्रमाणित कर रहा था, उस समय मेरे साथी मज़े में भोजन और आमोद-प्रमोद आदि में