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विचित्र प्रबन्ध।

आलस्य के मारे कुछ कुछ बन्द है। यह दृश्य स्वप्न की झलक के समान मालूम होता है।

इसी समय सुना गया कि दूसरे जहाज़ पर चलना होगा और वह जहाज़ आज रात ही को यहाँ से छूटेगा। शीघ्रता-पूर्वक केबिन में जाकर वहाँ चारों ओर बिखरे हुए सामान को एकत्रित करके किसी तरह चमड़े के बक्सों में रक्खा। बक्स सामान से ठसा-ठस भर गये। इससे उनमें ताला बन्द करना कठिन होगया। जब चार पाँच आदमी उन बक्सों पर चढ़ कर बड़े निर्दय भाव से नृत्य करने लगे तब उनके बोझ से बक्सों के दबने पर ताला बन्द हो सका। जहाज़ के नौकरों को इनाम दिया। फिर छोटे-बड़े- मँझोले अनेक प्रकार के आकारवाले बक्स, ट्रङ्क आदि के साथ नाव पर चढ़कर हम लोग नये जहाज़ "मैसिलिया" की ओर चले।

थोड़ी ही दूर पर मस्तूल ऊपर उठाये "मैसिलिया" खड़ा है। दीपकों के प्रकाश से उसके केविन जगमगा रहे हैं। उसकी खिड़- कियों की क़तारें खुली हुई हैं। मालूम होता है, वह प्राचीन युग का कोई सहन-नयन जल-जन्तु समुद्र में खड़ा है। सहसा बैण्ड बजने लगा। निस्तब्ध उज्ज्वल आधी रात को सङ्गोत की ध्वनि सुनकर मन में यह धारणा दृढ़ होने लगी कि अरब देश के पास आधी रात को आरव्योपन्यास की ऐसी कोई माया-घटित घटना होनेवाली है।

"मैसिलिया" आस्ट्रेलिया से यात्री लेकर आया है। कौतुहल- वश उसके स्त्री-पुरुष यात्री डेक पर चढ़कर नये यात्रियों के समा- गम को बड़े कौतुक से देख रहे हैँ। परन्तु उस दल में नवीनता के