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योरप की यात्रा।

बीच बीच में खिलखिला कर हँसने लगते हैं और फिर धीरे धोरे धर्म-सङ्गीत गाने में भी शामिल हो जाते हैं। इससे मेरे हृदय में यह भाव उत्पन्न हुआ कि इस उपासक-सम्प्रदाय में―इस भक्त- मण्डली मेँ―पेटी-कोट पहने शैतान आकर घुस गया है और वह अपनी मनोमोहिनी मूर्त्ति पर लोगों को लुभा रहा है तथा मनुष्यों की उपासना का उपहास करता है।

१ सितम्बर। सन्ध्या के बाद भोजन करके हम लोग डेक पर अपने अपने स्थान पर गये। धीरे धीरे शीतल वायु चल रहा है। मेरे साथी तो सो गये और भैया चुरुट पीने लगे। इसी समय नीचे के डेक पर नाचना-गाना शुरू हुआ। एक एक स्त्री पुरुष मिल कर नाचने-गाने लगे।

उस समय पूर्व दिशा में कृष्णपक्ष का पूर्णचन्द्र धीरे धीरे उदय होने लगा। तीर-रेखा-शून्य जल-मय महामरुप्रदेश की पूर्वी सीमा पर चन्द्रमा की पीली किरणें पड़ कर अनादि अन्त-शुन्य एक प्रकार के विषाद से पूर्ण हो उठी है। चन्द्रमा के उदय-स्थान के ठीक नीचे से लेकर हमारे जहाज़ तक अन्धकार-पूर्ण समुद्र के बीच लम्बा चौड़ा प्रकाश-पथ झिलमिलाने लगा। ज्योत्स्नामयी सन्ध्या किसी एक अलौकिक डण्ठल के सहारे सफेद रजनी-गन्धा के फूल के समान अपनी प्रशान्त सुन्दरता को चारों ओर विकसित करने लगी। इधर मनुष्य आपस में एक दूसरे को पकड़ कर पागल के समान बड़े आनन्द से कूद रहे हैं, हाँफ रहे हैं और अपने आपे से बाहर हो गये हैं। उनके समस्त शरीर का रक्त उछल उठा है और वह उनके मस्तक में घूम रहा है―आदि-सृष्टि की भाप के