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विचित्र प्रबन्ध।

पिया और गुण-गान किया। कल जहाज़ ब्रिंडिसी पहुँचेगा। रात ही को सामान आदि बाँध कर तैयार हो जाना चाहिए।

७ सितम्बर। आज प्रातःकाल हम लोग ब्रिडिसी पहुँचे। वहाँ मेल-गाड़ी खड़ी थी। हम लोग जाकर गाड़ी में बैट गये।

गाड़ी खुल गई। उस समय टप् टप् करके पानी पड़ना शुरू हो गया था। भोजन के बाद गाड़ी के कोने में खिड़की के पास आकर हम लोग बैठ गये।

पहले दोनों ओर अंगूर के खेत मिले। उसके अनन्तर जल- पाई के बाग़। जलपाई के वृक्ष नाटे, टेढ़े-मेढ़े, गाँठ-गठीले हैं। इनके पत्ते ऊपर की ओर उठे हैं। प्रकृति के हाथ के काम में जैमा एक सीधा-सादापन देखा जाता है वैसा भाव इन वृक्षों में नहीं है। इनमें ठीक उसके विपरीत भाव है। ये निपट दरिद्र शोभा- हीन वृक्ष हैं। ये बड़े कष्ट से अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट उठा कर अष्टावक्र के समान खड़े हैं। कोई कोई टेढ़े होकर ऐसे झुक गये हैं कि सहारे के लिए उनके नीचे पत्थर के ढोके रख दिये गये हैं।

बाईं और जोता खेत है। टूटे हुए सफ़ेद पत्थर के टुकड़े जोती हुई ज़मीन में पड़े हुए हैं। दाहनी और समुद्र है। समुद्र के ठीक किनारे ही छोटे छोटे नगर देख पड़ते हैं। प्रत्येक नगरी में गिरजे की ऊँची चोटी उसके मुकुट के समान दूर हो से देख पड़ती है। स्वच्छ सुन्दर छाटी नगरी युवती के समान मालूम पड़ती है। उसका में पड़ा। मालूम होता है, वह अपना मुँह समुद्रदर्पण में देखकर हँस रही है। नगर के आगे फिर खेत हैं। भुट्टों के खेत, अंगूर के खेत, फलों के खेत और जलपाई के वन हैं।