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योरप की यात्रा।

प्रकृति की भिन्नता के अनुसार हास्यरस के सम्बन्ध में अद्भुत रुचि-भेद देख पड़ता है। तुम लोग जिसको "ह्यू मर" कहती हो, मेरी समझ में उसका काले रंग के साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं है। मैंने देखा है कि तुम्हारे देश में लोग मुँह में स्याही पोतकर हबशी का स्वाँग बनाते हैँ और उसे एक कौतूहल की सामग्री समझते हैं; पर हे सुनहरे बालोंवाली, वह मुझे बहुत ही बर्बर हृदय-हीन का काम जान पड़ता है।

६ अक्तूबर। अभी तक हमारे प्रवास का समय व्यतीत नहीं हुआ। परन्तु मुझसे अब यहाँ नहीं रहा जाता। कहते लज्जा मालूम होती है, मुझे यहाँ रहना अच्छा नहीं मालूम होता। यह अह- ङ्कार की बात नहीं है, किन्तु लज्जा की बात है। पर इसे मैं अपने स्वभाव का ही दोष समझता हूँ।

जब मैं इसका कारण ढूँढ़ता हूँ तब मालूम होता है कि योरप के विषय में हम लोगों की जो धारणा है वह वहाँ का साहित्य पढ़ने से हुई है। अतएव जो योरप हम लोगों की धारणा मेँ वर्त- मान है वह 'आईडियल' योरप है। समाज के भीतर बिना घुसे उसका परिचय नहीं हो सकता। तीन महीने, छः महीने अथवा चार छः वर्ष रहने से हम लोग योरोपीय सभ्यता का केवल बाहरी हाथ-पैर हिलाना देख सकते हैं। बड़े बड़े मकान, बड़े बड़े कार- ख़ाने और आमोद-प्रमोद के अनेक स्थान ये सब बाहरी दिखावे हैं। लोग चलते हैं, फिरत हैँ, पाते हैँ, जाते हैं, जिधर देखो उधर भीड़ लगी हुई है, बड़ी चहल-पहल है। ये सब बातें देखने में कितनी ही विचित्र, कितनी ही आश्चर्यप्रद, क्यों न हों तथापि इनके देखने