पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५८
विचित्र प्रबन्ध।

प्रायः हमारे देश के लोग अँगरेज़-रमणियों की आँखों की दिल्लगी उड़ाते हैं। बिल्ली की आँखों से इनकी आँखों की तुलना करते हैं। पर यह अक्सर देखा जाता है कि हमारे देश के लोग भी जब विलायत आते हैं तब वे हरिण-नयन की बातें भूल जाते हैं। अभ्यास ही इसका कारण है। यदि अभ्यास शिथिल हो जाय तो वही मनुष्य, जो किसी समय एक वस्तु की हँसी उड़ाता था, दूसरे समय उसी वस्तु के सामने सिर झुकाता है। यह कोई असम्भव बात नहीं है, इसे मानना ही पड़ेगा। जब तक दूर हैं तब तक तो कुछ नहीं, पर सामने उपस्थित होने पर अँगरेज़-रम- णियों की आँखें हम लोगों के अभ्यास के पर्दे को फाड़ कर हृदय में घुस जाती हैं। अँगरेज़-स्त्रियों की आँखें मेघ-शून्य नीले आकाश के समान स्वच्छ, हीर के समान चमकीली और सघन पलकों से ढँकी हुई होती हैं। उनमें आवेश का नाम नहीं होता। मैं और किसी के बारे में यहाँ कुछ कहना नहीं चाहता। पर एक मुग्ध हृदय की बातें बिना कहे नहीं रहा जाता। वह नीले नेत्रों के भी अधीन है और हरिण के से नयनों की भी किसी प्रकार उपेक्षा नहीं कर सकता। उस मूर्ख के लिए जैसे बन्धन काले केश-कलाप हैँ वैसे ही सुनहरे केश भी।

संगीत के विषय में भी यही देखा जाता है। पहले जिस अँगरेज़ी संगीत की हँसी उड़ाने में आनन्द प्राप्त होता था, इस समय उसी संगीत को मन लगा कर सुनने में पहले से भी अधिक आनन्द मिलता है। अधिक अभ्यास हो जाने के कारण इस समय अँगरेज़ी संगीत का इतना स्वाद मिल गया है कि अन्त को यही