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विचित्र प्रबन्ध।

इस देश की हरी भरी पृथिवी का एक भाग जैसे किसी रोग के कारण कठिन हो गया है। दूर से देखते ही वहाँ ठहरने की इच्छा जाती रहती है। किन्तु अन्त को अपने नये मित्र के अनुरोध से मैं भी उनके साथ वहाँ उतर पड़ा। समुद्र तीर से एक सुरंग है। वह सुरंग बहुत दूर तक ऊपर की ओर चली गई है। उसी मार्ग से हम लोग ऊपर गये। बहुत से गाइड ( नगर-परिदर्शक ) हम लोगों के पास आ गये। मेरे साथी बड़ी चेष्टा करके उन लोगों को हटाने में समर्थ हुए। परन्तु उनमें का एक गाइड हम लोगों के साथ रह हो गया। बहुत मना करने पर भी वह हम लोगों का साथ छोड़कर नहीं गया। मेरे साथी बार बार उससे कहते थे कि हम तुमको नहीं चाहते, हम एक पैसा भी तुमको न देंगे। इतना कहने पर भी वह सन्ध्या के सात बजे तक हम लोगों के साथ ही रहा। परन्तु जब मेरे मित्र ने उसे डाँटा तब बेचारा निराश होकर चला गया। मैं उसको कुछ देना चाहता था पर पास में गिन्नियों के सिवा और कुछ भी न था। वह मनुष्य ग़रीब है, इसमें सन्देह नहीं; पर यदि वह अँगरेज़ होता तो ऐसा कभी न करता। सच्ची बात तो यह है कि परिचित दोष यदि बड़े हों तो भी उधर मनुष्य विशेष ध्यान नहीं देते; परन्तु अपरिचित सामान्य दोष को भी मनुष्य बड़ा भारी समझता है। अतएव एक दूसरी जाति के मनुष्य का कुछ भी अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य जाति के मनुष्य के गुण-दोषों का विचार करे।

माल्टा शहर देखने से जान पड़ता है कि वह अर्ध-गठित और विकृत योरप का एक नगर है। मार्ग में पत्थर बिछे हुए हैं। रास्ते