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विचित्र प्रबन्ध।

पर चढ़े "फ़िग" फल खा रहे थे। उन लड़कों ने हमारी ओर इशारा करके पूछा―खाओगे क्या? हम लोगों ने उत्तर दिया―नहीं। थोड़ी देर के बाद "आलिब" फल से लदी हुई एक डाल लेकर वे हमारे पास आये और हम लोगों से उन्होंने फिर पूछा―क्या आलिव-फल खाओगे? हम लोगों ने फल खाना नामंजूर किया। फिर उन लोगों ने इशारे से ही चुरुट माँगा। हमारे साथी ने चुरुट दिये। चुरुट पीते पीते वे दोनों लड़के हम लोगों के साथ चले। उन लड़कों की भाषा हम लोग नहीं जानते थे और हमारी भाषा उन लोगों को भी मालूम नहीं थी। इस कारण इशारों से ही हम लोग आपस में अपने अपने भाव प्रकट करने लगे। वह निर्जन रास्ता पहले बहुत दूर तक ऊँचा चढ़ता गया, और फिर ऊपर जाकर समतल खेत के रूप में दिखाई दिया। बीच बीच में छोटे छोटे मकान मिलते थे। उनकी खिड़कियों पर कुछ फल सूखने के लिए रक्खे थे। उस बड़े मार्ग से इधर उधर टेढ़े मेढ़े छोटे छोटे मार्ग गये थे और थोड़ी दूर आगे जाकर वे लुप्त हो गये थे।

लौटने के समय हम लोगों ने एक क़ब्रिस्तान देखा। हम उसके भीतर गये। यहाँ की क़बरें एक दूसरे ही ढङ्ग से बनाई जाती हैं। बहुत सी क़बरों पर छोटे छोटे घर बने हुए थे। उन घरों में पर्दा लगा रहता है तथा अनेक रङ्गों से चारों ओर चित्र बनाये जाते हैं। इस प्रकार क़बर के ऊपर का घर ख़ूब सजाया जाता है। मानोँ मृत्यु के खेलने के लिए यह घर बनाया गया है। इस प्रकार की क़बर बनाना एक प्रकार का लड़कपन है। इस देश के लोग मृत्यु का यथार्थ आदर करना नहीं जानते।