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विचित्र प्रबन्ध।

लिए उन औषधों का व्यवहार नहीं करते। इसी प्रकार दन्तमञ्जन बनानेवाले भी विज्ञापन में अपने मञ्जन की लम्बी चौड़ी तारीफ़ हाँकते हैं; पर ये दन्त-पङ्कियाँ उन मञ्जनों की और कुछ भी ध्यान नहीं देतीं। ये तो अपने लिए मञ्जन नहीं मँगातीं।

जो ही, पर इस समय मेरे इस मस्तक के भीतर घर के पत्र की प्रतीक्षा विचर रही है। यदि घर का पत्र मिल जाय तो अवश्य ही इसमें थोड़ी बहुत प्रसन्नता पैदा होगा। यदि पत्र नहीं मिला तो इस अस्थि-कोटर―मस्तक―में दुःख नाम का एक पदार्थ उत्पन्न होगा, उस समय यह मालूम होने लगेगा कि मुझे यथार्थ ही कष्ट हो रहा है।

२३ अक्तूबर। स्वेज नहर के बीच से हम लोग जा रहे हैं। जहाज़ बहुत ही धीरे धीरे चलता है।

आज का दिन प्रकाश-मय और कुछ गर्म है। हम एक प्रकार कं मीठे आलस्य के अधीन हो रहे हैँ। योरप जाने से जो भाव उदित हुए थे वे इस समय बिलकुल ही नष्ट हो गये हैं। इस समय तो मेरी आँखों के सामने, मेरा वहीं धूप से तपा हुआ, थका और दरिद्र भारतवर्ष―मेरा वहीं भारतवर्ष के एक छोर पर स्थित, पृथिवी से अपरिचित, नदियों के कल कल शब्द से गूँज रहा बङ्गाल प्रान्त―मेरे उस कर्म-हीन वाल्यकाल, चिन्ता से जर्जर यौवन और निश्चेष्ट तथा निरुद्यम जीवन का स्मरण सूर्य की किरणों के प्रकाश में, तपे हुए वायु के झोंके में दूर की मरीचिका की तरह, झूल रहा है।

डेक पर बैठे बैठे मैं एक कहानियों की पुस्तक पढ़ रहा था।