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विचित्र प्रबन्ध।

रही है। फेने से भरा समुद्र मानोँ नाच रहा है। धूप निकल आई है। कोई खेलता है, कोई उपन्यास पढ़ता है, कोई बातचीत करता है और कोई संगीतशाला मेँ बैठा गा रहा है। भोजनगृह में भोजन की तैयारी हो रही है। एक छोटे केविन में एक बूढ़ा यात्री मरा पड़ा है।

सन्ध्या का आठ बजने के समय डिलन साहब की मृत्यु हुई। आज ही सन्ध्या को एक नाटक का खेला जाना निश्चित हुआ था।

३ नवम्बर। अन्त्येष्टि-संस्कार करने के बाद डिलन का मृत- शरीर ममुद्र में फेंक दिया गया। आज का दिन हम लोगोँ की समुद्र-यात्रा का अन्तिम दिन है।

बहुत रात गये बम्बई बन्दर पर जहाज़ पहुँचा।

४ नवम्बर। जहाज़ से उतर कर भारतवर्ष की भूमि पर मैँने पैर रक्खा। आज का दिन साधारणतः बहुत ही आनन्द-मय मालूम होता है। हाँ, एक बात का झंझट अवश्य हा गया है। मैं अपना कैश-बक्स जहाज़ के केबिन ही पर भूल पाया। इस कारण संसार के आनन्दमय स्वरूप में बहुत उलट-फेर हो गया। मैँ होटल से शीघ्र ही जहाज़ पर गया और अपना कैश-बक्स उठा लाया। इसी बक्स के भूल जाने की सम्भावना से कल मन बेचैन हो गया था। मैंने अपने मन को समझाया कि बक्स भूला नहीं है। उस समय मन ने कहा, क्या पागल हो गये हो, क्या मुझको तुम इतना मूर्ख समझते हो। पर आज प्रातःकाल मैंने अपने मन का बड़ा तिरस्कार किया। वह बेचारा सिर नीचा किये चुपचाप रह गया। इसके बाद जब बक्स मिल गया तब मैं उसे पुचकारता होटल में