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पञ्चभूत।

गया। स्नान करने के बाद बड़ा आनन्द मालूम होता है। हाँ, यहाँ इस घटना को लेकर मेरी बुद्धि पर कटाक्ष करके मेरा उपहास करनेवाले मेरे मित्र कोई भी उपस्थित नहीं हैं। यह एक सौभाग्य की बात है। आज ही रात को मैं कलकत्ता जानेवाली गाड़ी पर बैठा, यद्यपि मैँ अपनी तकिया होटल ही में भूल आया हूँ तथापि सुख की नींद में विशेष विघ्न नहीं हुआ।

पञ्चभूत

परिचय

रचना के सुभीते के लिए मैं अपने पाँच मनुष्यों को "पञ्च- भूत" नाम से लिखूँगा:―क्षिति, अप्, तेज, मरुन, व्योम―के नाम से लिखूँगा।

कोई बनावटी नाम रखने से मनुष्य को बदल डालना होता है। जैसे तलवार की म्यान है वैसा मनुष्यों का नाम भाषा में ठीक ठीक मिलना कठिन है। सब से कठिन तो यह है कि इन पञ्चभूतों के साथ पाँच मनुष्यों का मिलान कैसे किया जाय?

मैं इनका ठीक ठीक मिलान करना भी नहीं चाहता। क्योंकि मैं किसी अदालत में हाज़िर नहीं होता। पाठकों की अदालत मेँ लेखक के लिए केवल यही धर्म की शपथ होती है कि सत्य ही बोलेंग। पर वह सत्य मैं कुछ बना कर कहूँगा।

अब मैं इन पञ्चभूतों का परिचय अपने पाठकों को कराता हूँ।

इनमें श्रीमती क्षिति सबसे भारी हैँ। अधिकांश विषयों में