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विचित्र प्रबन्ध।

विनय से बोलते हैं, लज्जा-पूर्वक काम करते हैं, और बड़े यत्न से जिसको जहाँ पहनने से शोभा होती है उसको वहीं पहनते हैं, इसीलिए हम लोगों को माता की आवश्यकता है, और तुम स्त्रियों का भी यही काम है। यदि सचमुच सभ्यता के गर्व से, आवश्यक ज्ञान-विज्ञान आदि को छोड़कर और सब बातों की उपेक्षा कर दी जाय-वे बातें त्याग दी जायँ―तो इस समस्त जाति की क्या दुर्दशा होगी, इसकी कल्पना तुमने की है? उस समय यह समूची जाति अनाथ बालक के समान असहाय हो जायगी।

श्रीयुत वायु ( इनको समीर नाम से लिखा जायगा ) ने हँस कर इन सब बातों को उड़ा दिया। तदनन्तर, उन्होंने कहा― श्रीमती क्षिति की बातें जाने दो। चारों ओर से बड़े ध्यान और विचारपूर्वक सत्य का अन्वेषण करने के समय उसके स्थिर मनो- राज्य में एक भयानक भूकम्प उपस्थित होता है, और वह उसके बड़े यत्न से बनाये भवनों को तोड़ फोड़ देता है। अतएव उसको यह कहना ही चाहिए कि देवता से लेकर कीट पर्यन्त सभी मिट्टी से उत्पन्न हुए हैं। यदि काई इस बात को न मानना चाहे तो उसको उचित है कि वह पृथिवी पर से दूर हो जाय।

श्रीयुत व्योम थोड़ी देर तक आँखें मूँद कर विचार करने के बाद बोले-यदि यथार्थ मनुष्य की बात कही जाय तो यह अवश्य कहना पड़ेगा कि जो अनावश्यक पदार्थ हैं वे ही मनुष्यों के लिए सब से अधिक आवश्यक हैं। जिन पदार्थों से मनुष्य को व्यव- हार मेँ सहायता मिलती है, जिनसे उसके काम निकलते हैं, पेट भरता है, उन्हीं पदार्थों से मनुष्य घृणा करता है। इसी कारण