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विचित्र प्रबन्ध।

अपने मनुष्यत्व को विकसित करने का उपदेश नहीं देता। किन्तु, वह जड़-पदार्थों को अपना दास बना कर उन्हें अपने वश में कर लेता है, उनपर मनुष्य का शासन स्थापित करता है। क्या यह मनुष्य का अपमान करना कहा जा सकता है? अतएव सदा के लिए जड़ के चंगुल से निकल कर स्वतन्त्र आध्यात्मिक सभ्यता प्राप्त करने के लिए इस बात की विशेष आवश्यकता है कि बीच में वैज्ञानिक साधना की जाय।

श्रीमती क्षिति अपने विरोधियों के मतों का खण्डन करने के लिए युक्ति दिखलाना आवश्यक नहीं समझतीं। इसी प्रकार व्योम भी एक बात कह कर चुप होगये। चाहे कोई कुछ भी क्यों न कहे पर उससे व्योम का विलक्षण धैर्य तनिक भी विचलित नहीं होता। वे चुपचाप हैं। मेरी बातों पर भी व्योम ने कुछ ध्यान नहीं दिया। क्षिति जहाँ थीं वहीं अचल बनी रहीं और व्योम भी अपनी गम्भीरता बनाये रखने में तत्पर रहे।

यही मैं और मेरे पञ्चभूत हैं। एक दिन श्रीमती दीप्ति ने मुझसे कहा―तुम डायरी क्यों नहीं लिखते?

स्त्रियों मेँ कुछ अन्ध-संस्कार भी रहते हैं। श्रीमती दीप्ति के हृदय में भी यह संस्कार बड़ा प्रबल था कि मैं कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हूँ। वे अपने को एक अति उच्च व्यक्ति समझती थी। मैंने भी उनके इस संस्कार को दूर करने का कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया।

वायु ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर कहा,―"क्यों, लिखते क्यों नहीं, लिखो न।" क्षिति और व्योम दोनों चुप रहे।