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विचित्र प्रबन्ध।

आनन्द का काम है। इसका कारण एक ओर तो नीच लाभ है और दूसरी ओर किसी का ख़ौफ़ न होना है। जिस प्रकार प्रकृति- राज्य में तरु-लता आदि बड़े प्रेम, आनन्द और उत्साह से वसन्त को पुष्पाञ्जलि अर्पण करते हैं, और वसन्त सञ्चित कर रखने की इच्छा से उसकी गणना नहीं करता, वैसी ही बात यहाँ भी है।

दीप्ति ने कहा―रुपया वसूल किया जा रहा है, तो इसमें बाजा बजाने की क्या आवश्यकता है?

क्षिति ने कहा―जिस समय बकरे का बच्चा बलि देने के लिए ले जाया जाता है उस समय क्या उसको माला नहीं पहनाई जाती और बाजा नहीं बजाया जाता? आज मालगुज़ारी-देवी के आगे बलिदान का बाजा बज रहा है।

मैंने कहा―इस दृष्टि से देखा जाय ता ठीक हो सकता है। पर जो बलि देना आवश्यक ही समझा जाये तो बिल्कुल पशु की तरह पशु-हत्या न कर उसमें, जहाँ तक हो सके, उच्च भाव लाने का प्रयत्न करना ही अच्छा है।

क्षिति ने कहा―मेरी तो यह राय है कि जिसका जो सच्चा भाव है उसी की रक्षा होनी चाहिए। कभी कभी नीच से नीच कामों मेँ भी उच्च भाव और कभी कभी ऊँचे कामों मेँ भी नीच भाव दिखाया जा सकता है।

मैंने कहा―भावों का सत्य और मिथ्या होना विशेष कर भावना पर निर्भर है। मैं इस वर्षा की भरी नदी को एक भाव से देखता हूँ और दूसरा दूसरे भाव से देखता है। मेरा भाव बाल भर भी मिथ्या है, यह बात मैं कभी नहीं मान सकता।