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विचित्र प्रबन्ध।

जाती है, अकस्मात् बाज़ार में घर की शोभा उपस्थित हो जाती है, मोल-तोल के ऊपर चन्द्र-किरणों के समान प्रेम की दृष्टि पड़ जाती है, और उससे उसकी कठोरता दूर हो जाती है। संसार में जो कुछ होता है वह चिल्लाने से ही होता है और जिसका होना आवश्यक है वह भी किसी दिन जन-समाज में उपस्थित होकर कोमल और मधुर स्वर में अलापता है। इस अलाप में उस समय के दूसरे अलाप भी अपनी शक्ति क्षीण कर के अपने को मिला देते हैँ। पुण्याह उसी संगीत का दिन है।

मैंने कहा―सब उत्सवों में यही बात है। मनुष्य जिस प्रकार प्रति दिन काम करता है, किसी किसी दिन ठीक उसके विपरीत करने लग जाता है। प्रतिदिन वह कमाता है और एक दिन ख़र्च कर देता है। प्रतिदिन द्वार बन्द रखता है, एक दिन उसे खोल देता है। प्रतिदिन वह अपने को स्वामी समझता है और एक दिन वहीं सब की सेवा करने लग जाता है। वही शुभ दिन है। वही दिन आनन्द और उत्सव का दिन है। वह दिन समस्त वर्ष का आदर्श है। वह दिन फूलों की माला, स्फटिक का दीपक और एक प्रकार का उत्तम आभूषण है। वह दिन दूर हो से वंशी के सुर मेँ कहता है कि आज के दिन का अलाप ही यथार्थ अलाप है और सब बेसुरा अलाप है। इससे मालूम होता है कि हम आपस में हृदय से मिलने के लिए आये थे, परन्तु अपनी दीनता के कारण वैसा न कर सके। जिस दिन हम लोग अपने आने का उद्देश पूरा कर सकते हैं वही दिन हम लोगों का यथार्थ दिन है। वहीं आनन्द का दिन है। वही उत्सव का दिन है।