पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९०
विचित्र प्रबन्ध।

ख़ज़ानची का आफ़िस नौबत बजाने की जगह नहीं है। परन्तु जहाँ भाव का सम्बन्ध है वहाँ वंशी का सुर बज ही जाता है। रागिनी के द्वारा भाव प्रकाशित होता है। सौन्दर्य उसका संगी है। गाँव की वंशी इस बात को प्रकाशित करना चाहती है कि आज हमारा पुण्य-दिन है। आज राजा-प्रजा के मिलन का दिन है। ज़मींदार की कचहरी में भी मनुष्य का आत्मा अपने प्रवेश के लिए मार्ग बनाने का प्रयत्न करता है। वहाँ भी भाव के लिए एक सुन्दर और विशाल सिहासन सजा सजाया रक्खा हुआ है।

नदी अपने मन में सोचते सोचते कहने लगी―मेरी समझ मेँ इससे केवल संसार की सुन्दरता ही प्रकट नहीं होती, किन्तु दुःख का बोझ भी घटता है। इस संसार में उच्चता और नीचता जब हैं ही, जब प्रलय के बिना इनके नाश होने का और कोई उपाय नहीं है, तब यह आवश्यक है कि उच्चता और नीचता में परम्पर एक स्थायी सम्बन्ध हो, जिससे कि उच्चता का भार वहन करने मेँ सुभीता हो। चरणों के लिए शरीर का भार ढाना कुछ भी कठिन नहीं है। क्योंकि उसके साथ उनका स्थायी सम्बन्ध है। पर बाहरी भार थोड़ा भी ले चलना कठिन हो जाता है।

इस प्रकार उपमा के द्वारा अपनी बात अच्छी तरह समझाने पर नदी कुछ लज्जित सी हो गई। जैसे उससे कुछ अपराध बन पड़ा है। बहुत लोग दूसरे के भाव को चुरा कर उसे अपना कहने इस तरह संकोच नहीं करते।

व्योम ने कहा―मनुष्य अपने पराजय होने की सम्भावना देख कर अपनी हीनता दूर करने के लिए किसी एक भाव से अपना