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पञ्चभूत।

की जो यह अकृतज्ञता है, इसका भी सम्भवतः कोई उदार ही कारण होगा। जड़-प्रकृति के साथ आत्मीयता-स्थापन के विषय में जो बात हुई हैं वे भी सम्भवतः बहुत ही सुन्दर हैं। उनके विचार-पूर्ण होने में भी सन्देह नहीं। क्योंकि अभी तक मैं इस पर गंभीर विचार नहीं कर सकी। सभी यह कह रहे हैं कि प्रकृति के साथ हम लोगों ने ही अपना सम्बन्ध स्थापित किया है, और योरपवाले प्रकृति के साथ अपरिचित के समान व्यवहार करते हैं। पर मैं यह पूछती हूँ, कि यदि अँगरेज़ी के साहित्य का ज्ञान हम लोगों का न होता तो क्या आज की इस सभा मेँ हम लोग ऐसी आलोचना कर सकते, और जिन्हें अँगरेज़ी के साहित्य का ज्ञान नहीं है वे क्या इन बातों को समझ सकते हैँ?

मैंने कहा―इसका एक कारण है। प्रकृति के साथ हम लोगों का जैसे भाई-बहन का सम्बन्ध है और योरप-वासियों का स्त्री-पुरुष का। हम जन्म से ही आत्मीय हैं, हम स्वभाव से ही एक हैं। और अँगरेज़ बाहर से प्रकृति के भीतर प्रवेश करते हैँ। वे पहले प्रकृति को जड़ समझते थे। एक दिन एकाएक यौवन-प्रारम्भ के समय उस पर उन लोगों की दृष्टि पड़ी, और उन्होंने प्रकृति की अपरिमेय अनिर्वचनीय और आध्यात्मिक सुन्दरता का आविष्कार किया। हम लोग आविष्कार करना नहीं जानते। क्योंकि आविष्कार करने के लिए सन्देह की आवश्यकता और प्रश्न करने की प्रवृत्ति चाहिए।

दुसरे आत्मा का सङ्घर्ष होने से ही आत्मा को अपने रूप का यथार्थ ज्ञान होता है। उसी समय मिलन का आध्यात्मिक भाव पूर्ण रूप से मालुम होता है। सम्मिलन के द्वारा अपनी सत्ता