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विचित्र प्रबन्ध।

वस्त्र को––हम लोग प्रणाम करेंगे। वह अग्नि की ज्वाला ऊपर उठे हुए तुम्हारे बाहुओं के समान हम लोगों में से हर एक को आशीर्वाद दें। हे सदा चुपचाप रहनेवाली स्वर्गवासिनी वीराङ्गनाओ, मृत्यु कितना उज्ज्वल, सहज और उन्नत है, इस बात को तुम्हारे द्वारा हमें बतलाते हुए अग्निदेव हम लोगों के घर-घर अभय की घोषणा करें।


पागल

पच्छिम की और एक छोटा सा शहर है। सामने एक चौड़ा रास्ता है। उसके दूसरे छोर पर कई टूटे छप्पर पड़े हैं। उनके उपर टीले पर पाँच छः ताड़ के पेड़, गूँगे के इशारे के समान, आकाश की ओर ठे हुए हैं! एक खँड़हर के पास एक पुराना इमली का पेड़ है। उसके छोटे और चिकने धने पत्ते नीले बादल के समान शोभित हो रहे हैं। खँड़हरों में बकरियाँ चर रही हैं। पीछे की ओर दोपहर के समय आकाश की दिगन्त-रेखा तक वन की श्यामता देख पड़ती है।

आज इस शहर के सिर पर से वर्षा ने एकाएक अपना काला घूँघट हटा दिया है।

मेरा बहुत सा ज़रूरी लिखने-पढ़ने का काम पड़ा हुआ है। आज वह पड़ा ही रहेगा। यह मैं जानता हूँ कि इस समय इन कामों को न कर लेने से पीछे सन्ताप होगा। किन्तु जो हो उसे स्वीकार कर लेना होगा। पूर्णता कोई मूत्ति रखकर एकाएक न