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पञ्चभूत।

और यदि चाहूँ भी तो तुम्हारे द्वारा इनका मिलना असम्भव है। पर बाल्यावस्था से लेकर इस जीवन में जितने सूर्योदय और सूर्यास्त के समय, कृष्णपक्ष की क्षीण-प्रकाश रात्रि में, वर्षा के मेघ-श्यामल मध्याह्न में, जो एक प्रकार का अवर्णनीय आनन्द मेरे अन्तरात्मा को मिला है वह आनन्द मेरे जन्म-जन्मान्तर के लिए स्थायी हो; इस संसार में मैंने अपने जीवन में जो उत्तम सौन्दर्य एकत्रित किया है उस सौन्दर्य का मैँ यहाँ से जाने के समय एक विकसित शत-दल-कमल के समान अपने हाथ में लिये जा सकूँ और यदि मेरे प्रिय के साथ मेरा साक्षात्कार हो तो मैं उसे उनके चरणों में अर्पण कर सकूँ। इसी से मैं अपने को कृतार्थ समझूँगा। यही मेरी इच्छा है।

स्त्री-पुरुष

श्रीयुत वायु ने एक प्रश्न किया। उन्होंने कहा―अँगरेज़ी के साहित्य में गद्य अथवा पद्य-काव्य में नायक और नायिका दोनों का माहात्म्य व्यक्त होते देखा जाता है। इसी डिमोना के निकट ओथेलो और इयागो दानों में कोई भी हीन नहीं है। इसी प्रकार क्लियोपेट्रा ने यद्यपि अपने कृष्ण और कुटिल बन्धन-जाल से एन्टोनी को छिपा रक्खा है तथापि एन्टोनी की उच्चता, लताओं से घिर हुए भग्नजयस्तम्भ के समान, सर्व-साधारण में प्रकाशित हुई है। लमार्मूर की नायिका अपने दयनीय सरल और सुकुमार सौन्दर्य से हम लोगों के मन को अपनी ओर खींच सकती है अवश्य, परन्तु रेवनस्वृड के विषादाच्छन्न नायक की ओर लगी हुई हम लोगों की दृष्टि को हटा नहीँ सकती। परन्तु बँगला साहित्य में नायिकाओं की ही प्रधानता देखी जाती है। कुन्दनन्दिनी और