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विचित्र प्रबन्ध।

सभी बातें उलट पलट जाती हैँ। उस समय नवीन नवीन विस्मय- जनक विचित्रताओं की सीमा नहीं रहती। साहित्य इसी परि- वर्तनशील संसार का एक चञ्चल चित्र है। उसको समालोचना- शास्त्र का विशेषण देकर बाँधने की चेष्टा व्यर्थ है। मानसिक जगत् में स्त्रियों की ही प्रधानता है, यह बात निश्चित रूप से कोई नहीं कह सकता। ओथेलो भी एक मानस-भाव-प्रधान नाटक है। पर उसके नायक के हृदयावेग की प्रबलता देखते ही बनती है। किंग लियर में भी यही बात है।

यह सुनते ही व्योम अधीर हो उठा। उसने कहा―ओह, तुम लोग तो व्यर्थ इतना तर्क-वितर्क करते हो। यदि सावधान होकर विचार करो तो तुम लोगों का यह बात स्पष्ट जान पड़े कि कार्य- क्षेत्र ही में स्त्रियों की प्रधानता है। कार्य-क्षेत्र के सिवा स्त्रियों के लिए और स्थान कहाँ है? यथार्थ पुरुष योगी, उदासीन और निर्जन- वासी ही होता है। कैलडिया के मरुक्षेत्र में पड़ा पड़ा मेषपाल पुरुष ऊपर की ओर ताकता था और आधी रात को आकाश में तारागण का चलना-फिरना देखा करता था, तब उसे क्या सुख मिलता था? क्या कोई स्त्री भी इस प्रकार बिना काम के समय बिता सकती है? जो ज्ञान किसी भी काम के योग्य नहीं है उस ज्ञान के प्राप्त करने के लिए कौन स्त्री अपना जीवन व्यतीत करना अच्छा समझती है? जिस ज्ञान से संसार-मुक्त आत्मा का विशुद्ध आनन्द मिलता है उसको कौन स्त्री मूल्यवान् समझती है? क्षिति के कहने के अनुसार यदि मनुष्य यथार्थ कार्यशील होता तो आज उसके समाज की यह उन्नति न होती; तब ये नये नये आविष्कार