पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०५
पञ्चभूत।

हम लोगों को बहुत अप्रिय मालूम होती हैं और प्रिय बातोँ को सुनकर हम लोग बहुत प्रसन्न होती हैं।

नदी यद्यपि स्त्री है तथापि वह सत्य बात स्वीकार करने में आगा-पीछा नहीं करती।

मैंने कहा―इसका एक कारण है। ग्रन्थकारों में कवि और गुणियों में गवैया स्तुति-मिष्टान्न को बहुत ही अधिक प्रिय समझते हैं। सच्ची बात यह है कि जिनका काम दूसरे को प्रसन्न करना है उनकी कृतकार्यता का चिह्न प्रशंसा ही है। अन्य कार्यों के फल के अनेक प्रकार के प्रत्यक्ष चिह्न हैँ। पर स्तुति पाने के सिवा मनोरञ्जन का दूसरा चिह्न नहीं है। इसी कारण गवैया जब ताल के पास आता है तब उसे सुननेवालों की मण्डली से प्रशंसा पाने की आशा लगी रहती है। इसी कारण अनादर का गुणीमात्र अप्रिय समझते हैं।

वायु ने कहा―केवल इतनी ही बात नहीं है। मनोरञ्जन करने- वालों का उत्साह-हीन होना भी उनके कार्य में एक बहुत बड़ी बाधा है। श्रोताओं को प्रसन्न देखने से ही गानेवाले अपने सब गुणों को प्रकाशित करते हैं। अतएव गुणियों के लिए प्रशंसा न केवल उनके कार्य का पुरस्कार है, किन्तु वह उनके सफल होने में भी प्रधान रूप से सहायता करती है।

मैँने कहा―स्त्रियों का भी प्रधान काम है आनन्द देना। अपने सारे अस्तित्व की कविता और गान के समान सुन्दर बनाने से ही स्त्रियाँ अपने जीवन के उद्देश्य में सफल हो सकती हैं। इसी कारण प्रशंसा से स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न होती हैं। गर्व के कारण स्त्रियाँ प्रशंसा