पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२२०

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पञ्चभूत। और मरुभूमि की चमक-दमक, भारी शून्यता और दग्ध दासता है। क्यों वायु, तुम क्या कहते हो ? नदी और दीप्ति की ओर देखकर हँसते हुए वायु आज की सभा में अपनी अमारता स्वीकार करने में साक्षात् दो बाधाएँ हैं। मैं उनका नाम लेना नहीं चाहता । बंगाली पुरुषों का इस संसार में यदि कहीं आदर है तो वह उनके घर में। बंगाली अपने घर में मनुष्य नहीं समझे जात, किन्तु वे देवता माने जाते हैं। हम लोग देवता नहीं हैं किन्तु तण और मिट्टी के पुतले हैं, यह बात अपने भक्तों के सामने कहने की क्या काई आवश्यकता है ? जिस अनजान और विश्वासी भक्त ने अपने हृदय-कुञ्ज के सब खिल हुए फूलों का सोने के थाल में सजा कर हमारे चरणों में सम- र्पित कर दिया है उन फूलों का हम किसे लौटा दें ? हम लोगों को देवसिंहासन पर बिठाकर सदाव्रत धारण करनेवाली यं सेवि. काए अपने गुप्त, पर चिरस्थायी, प्रेम-दीपक को लेकर हम लोगों कं गौरव-हीन मुम्ब की भारती उतारती हैं, उत्सुक होकर हमारी प्रदक्षिणा करती हैं। उनके सामने यदि हम लोगों ने अपनी उच्चत्ता प्रमाणित नहीं की, यदि चुपचाप बैठ रहकर उनकी पूजा ग्रहण न का, तो क्या वे इससे सुखी होगी. या हमी लोग सम्मानित हो सकेंगे ? जब तक वे छोटी थीं तब तक गुड़ियों पूजा-उन्हें सजीव सा समझ कर-करती रहीं, और बड़ी होने पर देवता समझ कर मनुष्य-पुतलं की पूजा करती हैं। यदि उस समय उनके खेलने की गुड़िया तोड़ दी जाती तो क्या वे बालिकाएँ राती नहीं ? इस समय यदि उनके पूजने का गुट्टा ताड़ दिया जाय तो क्या इससे स्त्रियों