पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२२६

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पश्चभूत । २१५ की दृष्टि से देखा और फिर मेरा मस्तक छू करकं घर की ओर चली गई। गँवई-गाँव भादों का महीना है | चारों ओर जल हो जल होगया है। खेतों में धान की फुनगी कं सिवा और कुछ भी नहीं देख पड़ता। दूर दूर पर वृक्षों से घिरे हुए गाँव ऊँची भूमि पर टापू ऐसे देख पड़ते हैं। यहाँ कं मनुष्य बड़े ही प्रेमी, विश्वासी और भक्त हैं। इनका दखने से मालूम पड़ता है कि प्रादम और इवा ने ज्ञान-वृक्ष के फल खान के पहले ही इनके पूर्व-पुरुपों का उत्पन्न किया था। इसी कारण यदि शैतान भी इनके यहाँ आता है तो ये उसे पूज्य अतिथि समझते हैं और उसका अपना भोजन देकर उसकी सेवा करते हैं। इन मनुष्यों के स्निग्ध हृदय को मैंने अपना प्राश्रम बनाया है। वहाँ रहने के समय पञ्चभूत-सभा कं किसी सभ्य ने मेरे पास समाचार-पत्रों के कटे टुकड़े भेज दिये । उन टुकड़ों के भेजने से उस सभ्य का मतलब यह था कि मुझे इस बात का स्मरण हो जाय कि पृथिवी घूमती है, वह स्थिर नहीं है । इसी परिवर्तन- शीलता का स्मरण कराने के लिए उसने लन्दन, पैरिस आदि के संवादां को एकत्रित करके मेरे पास भेजा है। इन टुकड़ों का मिलना एक प्रकार से अच्छा ही हुआ। इनको पढ़ने से मुझे बहुत सी नई नई बातें सूझी । कलकत्ते में रहने के समय ये बातें अच्छी तरह मेरी समझ में नहीं आ सकती थी।