पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२२९

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२१८ विचित्र प्रबन्ध। में अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क होने लगते हैं। अविश्वास की लहरें उठने लगती हैं। इसका प्रधान कारण यही है कि इस सम्बन्ध में हमारी प्रकृति के साथ विश्वास मिल नहीं गया । स्वभाव के भिन्न भिन्न अंशों में अविच्छंद्य ऐक्य ही मनुष्यत्व का अन्तिम लक्ष्य है। निम्नतम श्रेणी के जीवों में देखा जाता है कि उनके अङ्ग-प्रत्यङ्ग काट देने पर भी, उनका तीन चार भाग में बाँट देने पर भी, उनकी कोई क्षति-वृद्धि नहीं होती । परन्तु ऊँची श्रेणी के जीवों में यह बात नहीं देखी जाती । जीवों में जैसे जैसे उन्नति होती गई है वैसे वैसे उन अङ्ग-प्रत्यङ्गों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता गया है। मनुष्यों के स्वभाव में भी ज्ञान, विश्वास और कार्य की भिन्नता निम्न कोटि में पाई जाती हैं। इन तीनों में अभिन्न संयोग हो मनुष्यत्व की अन्तिम उन्नति है। किन्तु जहाँ ज्ञान, विश्वास और कार्य में विचित्रता नहीं है वहाँ इनमें एकता हा जाना, इनका मिल जाना भी कुछ कठिन नहीं है । फूलों के लिए सुन्दर होना जितना सहज है मनुष्यों के लिए सुन्दर होना उतना सहज नहीं। प्राणियों के अनेक प्रकार के कार्यों के करने योग्य विविध अङ्गों में वैसी सुन्दरता और सम्पूर्णता का होना बहुत कठिन है । जन्तुओं की अपेक्षा मनुष्यों में सुन्दरता का होना और भी दुर्लभ है । मानसिक प्रकृति के विषय में भी यही बातें कही जा सकती हैं। इस गाँव के किसानों की प्रकृति में जो एक प्रकार की एकता देखी जाती है उसमें बड़ेपन की जटिलता कुछ भी नहीं है। इस भूखण्ड में धान के खेतों के बीच जीवन व्यतीत करने में कुछ