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विचित्र प्रबन्ध।

आकर हमारे प्रतिदिन के कामों को अस्त-व्यस्त कर देता है वही दिन हमारे आनन्द का है। दूसरे दिन बुद्धिमानोँ और सावधानोँ के दिन हैँ, किन्तु कोई कोई दिन पूरे पागलों के होते हैं।

पागल शब्द हमारी घृणा के योग्य नहीं है। पागल निमाई (चैतन्यदेव) को पागल कह कर उनकी भक्ति करते हैं। हम लोगों के देवता महादेव भी पागल ही हैं। पागलपन का एक प्रकार का विकास ही प्रतिभा है––इस विषय को लेकर यूरोप के विद्वान् तर्कवितर्क कर रहे हैं। परन्तु हम लोगों को इस बात के मान लेने में कोई संकोच नहीं है। प्रतिभा और पागलपन दोनों एक ही नहीं तो क्या है। प्रतिभा भी नियमों का उलट-फेर है। वह भी उलटपलट देती है। ऐसे अनोखे दिन के समान वह भी एकाएक आकर सब काम-काजी लोगों के कामों को नष्ट कर देती है। कोई उसको गाली देने लगता है और कोई उससे आनन्दित होकर नाचने-कूदने लगता है।

भोलानाथ महादेव, जो हमारे शास्त्रों में आनन्दमय कहे जाते हैं, सब देवताओं में ऐसे ही अद्भुत और बेमेल हैं। उन्हीं पागल दिगम्बर को मैं आज के इस स्वच्छ नीलाकाश में व्याप्त सूर्य के प्रकाश मैं देख रहा हूँ। इस घने मध्याह्न के हृदय के भीतर डिमडिम शब्द से उनका डमरू बज रहा है। आज मृत्यु की यह नग्न और शुभ्र मूर्त्ति इस कर्मक्षेत्र संसार में कैसी चुपचाप खड़ी है! कैसी सुन्दर और शान्त शोभा है!

भोलानाथ, हम जानते हैं कि तुम अद्भुत और विलक्षण हो। जीवन के प्रत्येक क्षण में तुम अद्भुत रूप से ही अपनी भिक्षा की