पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२३१

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विचित्र प्रबन्ध । के समान है । यह देख कर स्वयं मैं ही विस्मित हूँ और सोचता हूँ कि यह सुन्दरता काहे की है। मैंने इसका एक उत्तर भी सोच लिया है। जिसकी प्रकृति एक विशेष और स्थायी भाव को प्रहण करती है उसके मुख पर वह भाव क्रमशः एक स्थायी सुन्दरता अंकित कर देता है। मेरे ये ग्रामवासी भो जन्म से ही कुछ स्थिर भावों की ओर स्थिर दृष्टि लगाये हुए हैं अतएव उन भावों को भी इन मनुष्यों की दृष्टि में अपने का अङ्कित कर देने का पूर्ण अवसर मिला है । इसी कारण इनकी दृष्टि में एक सकरुण धैर्य और इनके मुख पर आश्रय- शील वात्सल्य का भाव स्थिर रूप से प्रकट होरहा है। जो समस्त विश्वासों के विषय में प्रश्न करते हैं, जो अनेक प्रकार के भावों की परख करते हैं, उनका मुखमण्डल बुद्धि के प्रकाश से अवश्य प्रकाशित रहता है, अनुसन्धान-परता की निपु- पता उनकं मुख-मण्डल पर अवश्य प्रतिविम्बित रहती है, पर भाव की गहरी स्निग्ध सुन्दरता में और उसमें बड़ा भंद रहता है। मैं जिस नदी में इस समय छोटी नाव पर बैठा हूँ उसमें प्रवाह नहीं है, यह भी कहा जा सकता है। इसीसे यह नदी श्वेत कमल, लाल कमल, सेवार आदि से आच्छन्न हो रही है। इसी प्रकार की स्थिरता का अवलम्बन पाये बिना भाव-सौन्दर्य भी गम्भीर भाव से बद्धमूल होकर अपने को विकसित करने का अवसर नहीं पाता । प्राचीन योरप नव्य अमेरिका में उसी भाव के अभाव का अनु- भव करता है। नव्य अमेरिका में उज्ज्वलता है, चञ्चलता है,