पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विचित्र प्रबन्ध । यह बात नहीं है कि केवल प्राचीन काल की स्मृति में ही सौन्दर्य है। नवीन प्राशा में भी सौन्दर्य है। पर अभाग्यवश योरप की नई सभ्यता में अभी तक प्राशा का सञ्चार नहीं हुआ । प्राचीन योरप अनेक प्रकार की प्राशाओं से ठगा जा चुका है । बड़े विश्वास से उसने जिन उपायों का अवलम्बन किया था वे एक एक करके सब व्यर्थ हो गये हैं। बहुतां की राय है कि फ्रान्स का ग़दर एक भारी प्रयत्न का व्यर्थ परिणाम था । एक समय यारप के लोगों का विश्वास था कि सब लोगां को वोट देने का अधिकार दे दन ही से पृथिवी के प्रायः सब दुग्ब दूर हो जायेंगे । सब को वोट देने का अधिकार दिया भी गया पर पृथिवी के दुःख अभी ज्यों के त्यों बने हैं। एक समय लोगों की यह धारणा थी कि राज्य के द्वारा मनुष्यों के दुःख दूर किये जा सकते हैं, पर आज राज्य स्थापित होने पर विद्वानों को यह खटका हो रहा है कि राज्य के द्वारा मनुष्यों के कष्ट दूर करने का प्रयत्न करने से उलटा फल होने की सम्भावना है। कोयले की खान, कपड़े की कल, और विज्ञान-शास्त्र पर बहुतां का विश्वास है । पर उनसे भी मनुष्यों के कष्ट दूर नहीं होतं । बड़े बड़े विद्वानों का कहना है कि कलों के द्वारा भी मनुष्य पूर्णता नहीं पासकता । आधुनिक योरप कहता है कि प्राशा न करा, विश्वास भी मत करा,-केवल परीक्षा करो। इस नवीन सभ्यता की तुलना उस स्त्री से की जा सकती है जिसने वृद्ध पुरुष के साथ व्याह किया हो। उसके समृद्धि तो है किन्तु यौवन नहीं है। वह (सभ्यता) अपनी अनेक पुरानी अभिज्ञताओं के कारण जीर्ण हो रही है। नई सभ्यता और