पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पञ्चभूत। २२५ मनुष्यों में परस्पर प्रेम नहीं है। घर में केवल अशान्ति ही छाई इस प्रकार इस विषय की प्रालोचना करकं मैं इस छोटे से गाँव की क्षुद्र संपूर्णता के सौन्दर्य को देखकर दूना आनन्द पा रहा हूँ। परन्तु मैं ऐसा अन्धा नहीं हूँ कि योरप की सभ्यता की मर्यादा को न देखता हो । विचित्रता में मेल हो ऐक्य का पूर्ण आदर्श है। विचित्रता में मेल ही सौन्दर्य का प्रधान कारण है। इस समय योरप में भिन्नता की तूती बोलती है; अतएव परस्पर विच्छेद विष- मता आदि देख पड़ती है। जब किसी समय एकता का युग अावेगा तब ये सब मिल कर एक सुन्दर सभ्यता को उत्पन्न करेंगे । जो अपने छोटे उद्देश्य को सिद्ध करना ही अन्तिम कर्तव्य समझते हैं वे निःसन्देह अपना समय सुख और शान्ति से बिताते हैं । और, जो मनुष्य प्रकृति को छोटे उद्देश्य की ओर से हटा कर विशाल प्रादर्श की ओर ले जाते हैं उन्हें अवश्य ही अशान्ति तथा अनेक विन्न-बाधाओं से कष्ट उठाना पड़ेगा। पर हैं वे वीर । उन्हें युद्धस्थल में प्राण-त्याग करने पर स्वर्ग प्राप्त होगा । वीरता और सौन्दर्य का मिलन ही पूर्ण सभ्यता है और दोनों के अलग अलग रहन का नाम अर्द्धसभ्यता है। मैं इस गाँव में बैठकर अपने सीधे-सादे तानपूरे के चारों तारों को एक सुर में मिलाकर योरपीय सभ्यता से कहता हूँ कि तुम्हारा सुर मिला नहीं है, और साथ ही अपने तानपूरे से भी कहता हूँ कि तुम्हारे इन कई एक तारों के मिलने से बार बार जो यह स्वर की झनकार हो रही है वही सङ्गीत की अन्तिम सीमा