पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२४१

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विचित्र प्रबन्ध । जितनी ही अधिक सुनी जाती है उतनी ही अधिक उनकी कठिनता भी बढ़ती है। पहले जब मैंने ये बातें सुनी तब मालूम होता था कि मैं इन बातों को कुछ कुछ समझ रही हूँ। पर अब असीम अनन्त आदि शब्दों ने इस बात को बहुत ही कठिन कर दिया है । समझने का कोई उपाय हो नहीं है। मैंने कहा-भाषा भूमि के समान है। उसमें एक ही तरह का अन्न बान रहने से उसकी उपजाऊ शक्ति जाती रहती है। 'अनन्त' और 'असीम शब्दों का इस समय खूब प्रयोग होता है। अतएक इनकी शक्ति भी इस समय कम होगई है। यदि एक भी यथार्थ बात न कहनी हो तो उल्लिखित दोनों शब्दों का प्रयोग करना मेरी समझ में अनुचित है । मातृभाषा के गौरव की रक्षा करनी ही चाहिए । क्षिति ने कहा--भाषा के साथ तुम्हारा सदय व्यवहार ते नहीं देख पड़ता। वायु अभी तक मेरी पुस्तक पढ़ता था । पुस्तक समान करक वह कहने लगा-यह तुमने क्या किया ? तुम्हारी डायरी कं मनुष्य मनुष्य हैं या भूत ! देखता हूँ कि ये केवल बड़ी बड़ी अच्छी अच्छी बातें कहते हैं, पर न मालूम इनका आकार और प्रायतन कहाँ गया ? मैंन उदास होकर पूछा- क्यों ? वायु ने कहा-तुम समझते हो कि आम की अपेक्षा प्राम का मत अच्छा होता है, क्योंकि उसमें छिलका, जल आदि कुछ नहीं रहता, रहता है केवल खालिस आम । पर ग्राम के सत उसकी वह परम-लोभनीय गन्ध तो नहीं होती, उसका वह सुन्दर