पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२४३

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२३२ विचित्र प्रबन्ध । ! विश्राम की गति ही इसका प्रधान लक्षय है । अमरता को संक्षिप्त कौन कर सकता है, गति का सारांश कौन दे सकता है ? यदि अच्छी अच्छी पक्की बातें अनायास ही मनुष्य के द्वारा कहलाश्री तो भ्रम हो सकता है कि उसके मन में गति-वृद्धि नहीं है ! कहीं उसकी समाप्ति तो नहीं हो गई है ? प्रयत्न, भ्रम, असम्पूर्णता, पुनरुक्ति प्रादि यद्यपि देखने में दरिद्रता के समान प्रतीत होत हैं तथापि उनके द्वारा मनुप्य के एश्वर्य का पता लगता है, उनके द्वारा चिन्ता की एक गति और जीवन निर्दिष्ट होता है। मनुष्यों को बातचीत उनकं चरित्र का एक कच्चा रङ्ग है ! असम्पूर्णता की कोमलता, दुर्बलता आदि कं न रखनं से उसे एकदम समाप्त कर मानों छोटा बना देना है। इससे उसकी महत्ता जाती रहती है। उसके अनेक पर्वो की सूची निकाल दना क्या अच्छा है ? वायु ने कहा-मनुष्य में व्यक्त करने की योग्यता बहुत कम होती है। अतएव लोग प्रकाश के माथ निर्देश, भाषा के साथ अङ्ग- भङ्गी और भाव के साथ भावना का मिलात हैं। रथ नहीं है तो भी उसे रथ पर चढ़ा कर चलाना होता है । यदि किसी मनुष्य का चित्र तुम अङ्कित करना चाहते हो तो उसको कंवल खड़ा करकं और उसके मुंह से कटी छटी कई बातें कहला देने से ही काम नहीं चल सकता। उसको चलाना होगा। एक स्थान से दूसरे स्थान पर लं जाना होगा। उसकी महत्ता दिखाने के लिए उसे असम्पूर्ण ही रखना पड़ेगा। मैंने कहा-यही तो कठिन है। बात समाप्त करके समझाना होगा। पर वह अभी तक समाप्त नहीं हुई, यह लिखाना सामान्य काम नहीं है। । -