पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२४४

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पञ्चभूत। २३३ नदी ने कहा-अतएव बहुत दिनों से साहित्य के विषय में एक प्रकार का तर्क चला पाता है कि विषय-वर्णन महत्व-पूर्ण है या उसकी शैली । अभी तक इसका कुछ निर्णय नहीं हो सका । मैंने स्वयं भी इस बात पर बहुत विचार किया। पर इसका कुछ ठीक उत्तर नहीं मिला। इस विषय का जब विचार किया जाता है और जिनका प्रधानता देने की युक्तियाँ हूँढ़ी जाती हैं वही प्रधान हो जाता । व्योम ऊपर की ओर देख कर कहने लगा--साहित्य श्रेष्ठ है या शैली, इस विषय का विचार करने के लिए देखना चाहिए कि दोनों में कौन अधिक रहस्यमय है। विषय शरीर है और शैली उसका जीवन है। शरीर की पूर्णता प्रत्यक्ष है, परन्तु जीवन के माध असम्पूर्णता लगी रहती है, वह असम्पूर्णता उसको विशाल भविष्यत् की ओर खींचे हुए है । वह जीवन के साथ दृश्य पदार्थों को नांघ कर दूमरी नई नई प्राशाओं के जोड़ने की सम्भावना उत्पन्न करती है । वर्णन के द्वारा जो अंश प्रकाशित होता है वह देह है, वह जड़ है, और वह सीमा के घर से बँधा हुआ है। शैली के द्वारा जा मालूम होता है, शैली जिन बातों का वर्णन में सञ्चारित करती है वह जीवन है। उसी के द्वारा विषय में वृद्धि-शक्ति और गति-शक्ति उत्पन्न होती है। वायु ने कहा-साहित्य के सभी विषय बहुत पुराने हैं पर नये भाकार में प्रकट होने से वे नये हो जाते हैं 1 नदी ने कहा- मैं समझती हूँ कि मनुष्य के बारे में भी यही बात कही जा सकती है । हर एक मनुष्य अपने मन को लेकर इस