पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२५२

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पञ्चभूत । प्रविष्ट हो रहा है। इस तरह जीवन व्यतीत करने में हानि क्या है ? काग़ज़-कलम लेकर बैठने के लिए क्या किसी ने तुम्हें कभी दबाया है ? किसी विषय में तुम्हारी सम्मति क्या है, किस विषय को तुम अच्छा या बुरा समझते हो, इस बात के लिए आकाश- पाताल एक करने की और कमर कसकर सदा तैयार रहने की क्या कोई प्रावश्यकता है ? यह देखो, इस खेत में कहीं कुछ भी नहीं है। वह देखो, हवा कुछ सूखे पत्तों और धूल को किस तरह घुमाती हुई आप भी नाच रही है ! वह थोड़ी देर तक पैर के अँगूठे पर भार देकर सीधी खड़ी हुई। उस समय की उसकी अदा देखने ही योग्य थी, फिर वह उन सूखे पत्तों का इधर उधर उड़ाकर न मालूम कहाँ चली गई। उसका कुछ पता नहीं है । उस के खेल करने का सामान भी विलक्षण है। कुछ सूखे पत्ते और तृण, धूल आदि तथा उस समय और जो कुछ मिल सका वहीं उसके खेल का मामान है। इन्हीं सामग्रियां से हवा कैसो अपने खेल के लिए तैयारी कर लेती है और खेल कर चली जाती है। इसी प्रकार सुन- सान दोपहर में वह सब खेतों में घूमा करती है। उसका न तो कोई आदर्श ही है और न उसके खेल को देखने वाला हो कोई है। उसका न कोई मत है, न कोई तत्त्व । उमका समाज भी नहीं है। परन्तु इतिहास के विषय में वह बड़ा हो सुन्दर उपदेश देती है। संसार में जो सब से अनावश्यक पदार्थ हैं, जिनकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं है, उन्हीं पदार्थों में मन्त्र फूंक कर वह घड़ो भर के लिए उनमें जीवन-संचार करती और उन्हें सुन्दर बना देती है। ऐसे ही यदि मैं अनायास जो कुछ मिलता उसे सुन्दर बनाकर, १६