पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२५६

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पञ्चभूत । लोचना और है वनवासी समाज के लिए असामयिक तत्वोपदेश । इसमें न पत्तों का मधुर शब्द है, न छाया है और न मर्वाङ्ग- च्यापी सरसता ही। यदि कोई बलवान् शैतान गिरगिट की तरह छिपकर पृथिवो में घुस जाय और वह टेढ़ी मेढ़ी जड़ों के द्वारा संसार के सारे वृत्त, लता, गुल्म, तृण आदि का मन दंदे ता क्या इस संसार में सूर्य की किरणों से तपे हुए को विश्राम करने के लिए छाया मिल सकेगी ? यह भाग्य की बात है कि बगीचों में आने पर पक्षियों के निरर्थक शब्द सुनने को मिलते हैं, और अक्षर-हीन हरे पत्तों के स्थान पर प्रत्येक शाखा में सूखे और स्वच्छ मासिक-पत्र, ममा- चार-पत्र तथा विज्ञापन आदि लटकते नहीं देखे जाते । यह भी सौभाग्य की बात है कि वृक्षों में सोचने की शक्ति नहीं है। यह प्रसन्नता की बात है कि धतूरे का वृक्ष मदार के वृक्ष की समालोचना नहीं करता। वह उससे यह नहीं कहता कि भाई, तुम्हारे फूल कोमल तो हान हैं पर सुन्दर नहीं होते; और बेर के फल कटहल से यह नहीं कहते कि तुम अपने को बड़ा समझते हो परन्तु हम तुम्हारी अपेक्षा कुम्हड़े के फल का बड़ा ममझते हैं। कंला भी यह नहीं कहता कि मैं सब से सस्ते परन्तु सबसे बड़े पत्ते सब को देता हूँ, और न केले को नीचा दिखाने के लिए दूसरे वृक्ष ही यह कहते हैं कि मैं केले के पत्ते से भी बड़े पत्ते उससे भी कम दाम में देता हूँ। तर्क से व्याकुल, चिन्ता से चिन्तित, वत्तता से थका मनुष्य उदार और खुले आकाश का निश्चिन्त ज्योतिर्मय प्रशस्त ललाट देख