पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२५८

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पञ्चभूत । लज्जा आदि से रक्षा करता है । वह वायु-वेग से संसार में चारों ओर उड़ता नहीं फिरता । यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कभी कभी बटन के छेद से बाहर की हवा उसके मन में जाकर उसे अभिमानी बना देती है कि नहीं। यदि वह कभी कभी अहङ्कार करता भी हो तो उसके जीवन के लिए यह अहङ्कार लाभदायक ही है। प्रखण्डता दीप्ति बाली–मैं सच्ची बात कहती हूँ। मेरी समझ में तो प्राज-कल तुम लोग कुछ विशेषता के साथ प्रकृति की स्तुति करने लग हो। मैंने कहा--दवि, क्या तुम दूसर की स्तुति नहीं सुन सकती ? दीप्ति ने कहा- जहाँ कंवल स्तुति हो की जाती है और दूसरी कोई बात नहीं है वहाँ उसका अपव्यय होना किससे दरखा जा सकता है? बड़ी नम्रता और हाम्य-पूर्वक नीची आँखें करके वायु ने कहा- भगवति. इस बारे में शायद तुमने भी विचार किया होगा कि प्रकृति की स्तुति और तुम लोगों की स्तुति में कुछ विशेष भेद नहीं है। जो प्रकृति का स्तव-गान करते हैं वे प्रधानतः तुम्हारे हो पुजारी हैं। दोस्ति नं अभिमान से कहा-ता आपके कहने का प्रयोजन यह हुआ कि जो जड़ कं उपासक हैं वहीं हम लोगों के भी हैं ? वायु ने कहा-जब आपको ऐसा भ्रम है तो अवश्य ही इस भ्रम को दूर करने के लिए लम्बी चौड़ी वक्तृता देनी होगी। हम लोगों की भूत-सभा के वर्तमान सभापति श्रद्धेय श्रीमान भूतनाथ