पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६०

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पञ्चभूत। तो पाणिनि की अष्टाध्यायी, अमरकाश और धातुपाठ का अच्छी तरह से अभ्यास किया जा सकता। व्योम को बड़ा आनन्द हुआ। वह पहले तो बड़े जोर से हँसा और फिर कहने लगा---यह तो बड़ी अच्छी बात है। इस पर मुझे एक कहानी याद आ गई। नदी ने कहा-तुम लोग वायु की बातें न सुनने दोग । वायु, तुम पढ़ो। इन लोगों की बात न सुनो। नदी की आज्ञा के विरुद्ध किसी ने भी कुछ न कहा। स्वयं क्षिति ने भी डायरी उठा ली और वह अपराधी के समान चुपचाप एक ओर बैठ गई। वायु पढ़ने लगा -मनुष्य को विवश होकर पग पग पर मन की सहायता लेनी पड़ती है; इसी कारण मनुष्य मन के यथार्थ रूप का नहां पहचान सकता । मन के द्वारा हमार बड़े बड़े उपकार हात हैं, परन्तु उसका स्वभाव एमा है कि वह हम लोगों के साथ मिल कर नहीं चल सकता । वह सदैव एक न एक नई बात करता रहता है। कभी परामर्श देता है, कभी उपदेश देने के लिए आगे बढ़ता है और सभी बातों में हस्तक्षेप किया करता है। मालूम होता है कि वह है वाहरी मनुष्य परन्तु आज हम लोगों के घर का होगया है। अताम्ब उसको छोड़ना कठिन है । और, उससं प्रेम करना तो और भी कठिन है। मनुष्य का मन भारतवासियों पर अँगरेज-सरकार के समान है। हम लोगों के प्राचार-व्यवहार देशी ढङ्ग के हैं और कानून दूसरे ढङ्गकं । वह हमारा उपकार करता है राजा