पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६४

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पश्चभूत। चिन्ता और संशय से व्याकुल मनुष्य के लिए इस व्यवस्थित इच्छा-शक्ति का प्राकर्षण बड़ा ही प्रबल है। राज-भक्ति, प्रभु-भक्ति आदि इसी इच्छा-शक्ति के आकर्षण के उदाहरण हैं। जो राजा इच्छा होने से ही अपने प्राणों को दे सका है और दूसरे के प्राणां को ले सका है, उस नरपति के लिए प्राचीन युग में बहुत मनुष्यों नं स्वयं अपनी इच्छा से ही अपने प्रागा दिये हैं। परन्तु आज इस नये युग में नियम-पाश से बंधे हुए राजाओं के लिए अपनी इच्छा से प्राण देने का कोई तैयार नहीं होता। जिसका जन्म मनुष्य-जाति के नेता के घर में होता है उसमें मन का अधिकार नहीं देखा जाता । वह क्या सोच कर किस तरह कान काम करता है, यह पहले किसी की समझ में नहीं आता। अतएव मनुष्य अपने संशय को दूर करने के लिए व्याकुल हा कर अपनी परिधि से बाहर निकलता है, और पतङ्ग के समान उसकं महत्व की अग्निवाला पर गिर कर मर जाता है, पर पता नहीं पाता। स्त्रियाँ भी प्रकृति के समान ही हैं। स्त्रियों को मन के खण्ड- खण्डों में विभक्त होना नहीं पड़ा पुष्प के समान नीचे से ऊपर तक एक है, अखण्ड हैं। इसी कारण उनकं आचार-व्यव- हार आदि इतने मनाहर और इतने सम्पूर्ण हैं, इसी कारण संशय के डाले में बैठे हुए मनुष्यों के लिए स्त्रियाँ "मरणं ध्रुवम्” हैं। प्रकृति के समान स्त्री की भी इच्छा-शक्ति में युक्ति, तर्क, पालोचना आदि नहीं है अतएव वह कभी अपनं चारों हाथों से अन्नदान करती है और कभी संहार-मूर्ति धारण करके प्रलय I