पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६९

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२५८ विचित्र प्रबन्ध । वे कार्य भी इसी प्रकार सिद्ध हुए हैं । जो पदार्थ जहाँ का है वह किसी दैवी शक्ति के प्रभाव से अनायास ही उस स्थान पर जाकर एकत्रित हो जाता है और इस प्रकार वह कार्य भी सुसम्पन्न तथा सम्पूर्ण हो जाता है। प्रकृति का सबसे छोटा पुत्र उद्दण्ड मन यहाँ से निकाल नहीं दिया जाता और न उमका तिरस्कार ही होता है किन्तु प्रतिभा की अमाघ शक्ति से उसका बल क्षीण हो जाता है। वह मन्त्र-मुग्ध के समान मब काम करता जाता है। देखनेवाले समझते हैं कि किसी योग-बल से यं कार्य होत जाते हैं। सारी घटनाएँ और बाहरी अवस्थाएँ आदि योग-बल से इच्छा के अनुसार अनुकूल हो जाती हैं। गरीबाल्डी नं इसी प्रकार अधःपतित गम-साम्राज्य का पुनरुद्धार किया और वाशिंगटन ने वन में चारों ओर बिखरी हुई शक्तियों का एकत्रित करकं अम- रिकन संयुक्त राज्य की स्थापना की। ये सब कार्य योग-साधन कह जाते हैं कवि जिस प्रकार काव्य बनाते हैं, तानसेन जिम प्रकार तान- लय-सुर आदि के द्वारा गान बनात थे, उसी प्रकार स्त्रियाँ भी अपने जीवन की रचना करती हैं। त्रियां की सृष्टि भी वैसे ही अचेतनता तथा माया-मन्त्र के द्वारा होता है। पिता, पुत्र, भाई, बहन, अतिथि, अभ्यागत आदि को सुन्दर बन्धन में बांध कर वे अपने चारों ओर सजाती है। इन विचित्र उपादानों से बड़ी कुश. लता-पूर्वक वे एक घर बनाती हैं। कंवल घर ही क्यों, स्त्रियाँ जहाँ जाती हैं वहीं एक सुन्दर सृष्टि कर लेती हैं; अपना चलना-फिरना, वेश-भूषा, बातचीत आदि को बड़े अच्छे ढङ्ग से सजा लेती हैं। .